Pitra Dosh Upaay: पितृ दोष निवारण साधना ओर तर्पण विधि

मानव जीवन परा अपरा शक्तियों के द्वारा
हि चलायमान है किन्तु इन शक्तियों पर हमारा पूर्ण रूप से नियंत्रण नहीं अतः जिस
प्रकार का जीवन व्यक्ति जीना चाहता है वह उसके लिए संभव नहीं हो पाता, चाहे वह धनि
हो या निर्धन अनेकानेक समस्याएं आती जाती रहती हैं उसे कई दृष्टियों से समस्याएं
झेलना पड़ता है। क्या इनसे सुलझने के कोई उपाय हैं ? क्या हम उन्हें पहचान नहीं
सकते ? कि कौन हमें सहयोग प्रदान करेगा और कौन नहीं किसकी शक्ति हमें प्राप्त हो
सकती है यदि शत्रु हमें परेशां कर रहा है तो उसे कैसे रोका जाये या अन्य कोई बाधा
है तो उसे कैसे कंट्रोल किया जाये।
हि चलायमान है किन्तु इन शक्तियों पर हमारा पूर्ण रूप से नियंत्रण नहीं अतः जिस
प्रकार का जीवन व्यक्ति जीना चाहता है वह उसके लिए संभव नहीं हो पाता, चाहे वह धनि
हो या निर्धन अनेकानेक समस्याएं आती जाती रहती हैं उसे कई दृष्टियों से समस्याएं
झेलना पड़ता है। क्या इनसे सुलझने के कोई उपाय हैं ? क्या हम उन्हें पहचान नहीं
सकते ? कि कौन हमें सहयोग प्रदान करेगा और कौन नहीं किसकी शक्ति हमें प्राप्त हो
सकती है यदि शत्रु हमें परेशां कर रहा है तो उसे कैसे रोका जाये या अन्य कोई बाधा
है तो उसे कैसे कंट्रोल किया जाये।
जहाँ तक सही मार्गदर्शन का या सहयोग का
सम्बन्ध है, तो वह है गुरु। क्योंकि बगैर गुरु के निर्दिष्ट दिशा प्राप्त नहीं हो
पाती जीवन के प्रत्येक पक्ष को गुरु द्वारा सुद्रण बनाया जा सकता है किन्तु योग्य
गुरु के अभाव में कभी कभी जीवन नष्ट भी हो जाता है इसलिए शास्त्रों में गुरु के
चुनने को अति महत्वपूर्ण बताया गया है ….
सम्बन्ध है, तो वह है गुरु। क्योंकि बगैर गुरु के निर्दिष्ट दिशा प्राप्त नहीं हो
पाती जीवन के प्रत्येक पक्ष को गुरु द्वारा सुद्रण बनाया जा सकता है किन्तु योग्य
गुरु के अभाव में कभी कभी जीवन नष्ट भी हो जाता है इसलिए शास्त्रों में गुरु के
चुनने को अति महत्वपूर्ण बताया गया है ….
और गुरु के पश्चात् सबसे बड़ा सहयोगी परिवार होता है और उसमें भी हमारे वरिष्ठ और पूर्वज | जीवित रहते हुए कभी आपस में मनमुटाव या मतभेद हो सकते हैं किन्तु यही विषय मृत्यु के पश्चात् समाप्त होजाती है और जिस प्रकार माता पिता अपनी संतान को सदैव योग्य और सामर्थ्यवान देखना चाहते हैं
उसी प्रकार पूर्वज भी यही चाहते हैं कि उनके वंसज अपने जीवन में पूर्ण रूप से सुखी
संपन्न हों |
संपन्न हों |
शास्त्र सम्मत है और सिद्ध है कि
मृत्यु जीवन का अंत नहीं है इसके बाद का जीवन हि अधिक शक्तिशाली प्रभावकारी और
सामान्यतः अनियंत्रित है | भौतिक जीवन कि सभी रुकावटें और गतिविधियों से परे है और
मृत्यु के पश्चात् प्राणी एक तेज शक्ति पुंज बन जाता है |
मृत्यु जीवन का अंत नहीं है इसके बाद का जीवन हि अधिक शक्तिशाली प्रभावकारी और
सामान्यतः अनियंत्रित है | भौतिक जीवन कि सभी रुकावटें और गतिविधियों से परे है और
मृत्यु के पश्चात् प्राणी एक तेज शक्ति पुंज बन जाता है |
गीता के अनुसार – व्यक्ति के जीवन का
अंत होने से जीवन यात्रा समाप्त नहीं होती बल्कि एक तरह से पुराने वस्त्र छोड़कर नए
वस्त्र धारण करती है | आत्मा स्थूल शरीर को त्याग कर सूक्ष्म शरीर को धारण करती है
विभिन्न मतों के अनुसार – आत्मा मृत्यु के बाद भी अपने सम्बन्धियों के आसपास
मंडराती रहती है मोहवश वे उनसे दूर नहीं जा पाती और उनके नजदीक हि रहती है | चूँकि
वे सूक्ष्म रूप में होने से सबको देख सकती हैं किन्तु हम उन्हें नही देख पाते | और
यही वजह है कि हम उनके प्रति लापरवाह हो जाते है और उन्हें सही पूजा भावना आदि
नहीं दे पाते फलस्वरूप वे हमसे निराश होती जाती हैं और वे हमसे रुष्ट हो जाती हैं
जिससे जीवन में अनेक बाधाएं और समस्याएं आने लगती हैं |
अंत होने से जीवन यात्रा समाप्त नहीं होती बल्कि एक तरह से पुराने वस्त्र छोड़कर नए
वस्त्र धारण करती है | आत्मा स्थूल शरीर को त्याग कर सूक्ष्म शरीर को धारण करती है
विभिन्न मतों के अनुसार – आत्मा मृत्यु के बाद भी अपने सम्बन्धियों के आसपास
मंडराती रहती है मोहवश वे उनसे दूर नहीं जा पाती और उनके नजदीक हि रहती है | चूँकि
वे सूक्ष्म रूप में होने से सबको देख सकती हैं किन्तु हम उन्हें नही देख पाते | और
यही वजह है कि हम उनके प्रति लापरवाह हो जाते है और उन्हें सही पूजा भावना आदि
नहीं दे पाते फलस्वरूप वे हमसे निराश होती जाती हैं और वे हमसे रुष्ट हो जाती हैं
जिससे जीवन में अनेक बाधाएं और समस्याएं आने लगती हैं |
हम समझ हि नहीं पाते कि आखिर क्या वजह
है कि इन समस्याओं से निपट नहीं पा रहे हैं |
है कि इन समस्याओं से निपट नहीं पा रहे हैं |
किन्तु अब कालान्तर से वर्तमान में बहुत अधिक परिवर्तन आया है लोग हमारी प्राच्य ज्योतिष विद्या की ओर अग्रसर हुए और
हो रहें हैं जिससे हमें अनेक वे बातें मालूम हो जाती है जिनसे बाधा आने वाली है या
आ सकती है और हम सतर्क भी हो रहे हैं हालंकि इस क्षेत्र में भी काफी भटकाव है
किन्तु फिर भी कहीं न कहीं से सही मार्गदर्शन मिल हि जाता है | ज्योतिष में कुंडली
के आधार पर देखा जा सकता है कि हमारी लग्न कुंडली में पित्र दोष है या नहीं सूर्य
,चन्द्र के राहू केतु से पीड़ित होने पर ये दोष लगता है और व्यक्ति इसी में उलझा रह
जाता है
हो रहें हैं जिससे हमें अनेक वे बातें मालूम हो जाती है जिनसे बाधा आने वाली है या
आ सकती है और हम सतर्क भी हो रहे हैं हालंकि इस क्षेत्र में भी काफी भटकाव है
किन्तु फिर भी कहीं न कहीं से सही मार्गदर्शन मिल हि जाता है | ज्योतिष में कुंडली
के आधार पर देखा जा सकता है कि हमारी लग्न कुंडली में पित्र दोष है या नहीं सूर्य
,चन्द्र के राहू केतु से पीड़ित होने पर ये दोष लगता है और व्यक्ति इसी में उलझा रह
जाता है
सदगुरुदेव ने अपनी अनेक मेग्जिन और बुक्स
में पित्तरों की शक्ति सामर्थ्य और उनकी साधना पर जोर दिया है और प्रकाश भी डाला
है ताकि उससे हम लाभ उठा सकें | ऐंसी हि एक विशिष्ट साधना हम इस बार करेंगे,
में पित्तरों की शक्ति सामर्थ्य और उनकी साधना पर जोर दिया है और प्रकाश भी डाला
है ताकि उससे हम लाभ उठा सकें | ऐंसी हि एक विशिष्ट साधना हम इस बार करेंगे,
पित्तरेश्वर की शक्ति सूक्ष्म होने कारण अति
विशाल और शक्ति एवं सिद्धि के स्वरुप हो जाते हैं उत्तम होने के कारन वायु
स्वास्थ्य गर्भ आदि के नियंत्रक भी हो जाते हैं अपनी शक्तियों से आने वाली
प्रत्येक घटना जानकारी उन्हें होती है अतः वे अपने वंसज को सही मार्ग दिखा कर ऐसे
कार्य की ओर प्रवृत्त कर देते हैं जिससे उनकी पूर्ण उन्नति हो सकें फिर उनके लिए
कोई भी कार्य असंभव नहीं रह पाता किन्तु आवश्यकता केवल इस बात की है कि हमारे
पूर्वज पूर्ण रूप से प्रसन्न हों इसके लिए हमें उनकी पूजा साधना ध्यान और पवित्र
भावना का ध्यान रखना होगा |
विशाल और शक्ति एवं सिद्धि के स्वरुप हो जाते हैं उत्तम होने के कारन वायु
स्वास्थ्य गर्भ आदि के नियंत्रक भी हो जाते हैं अपनी शक्तियों से आने वाली
प्रत्येक घटना जानकारी उन्हें होती है अतः वे अपने वंसज को सही मार्ग दिखा कर ऐसे
कार्य की ओर प्रवृत्त कर देते हैं जिससे उनकी पूर्ण उन्नति हो सकें फिर उनके लिए
कोई भी कार्य असंभव नहीं रह पाता किन्तु आवश्यकता केवल इस बात की है कि हमारे
पूर्वज पूर्ण रूप से प्रसन्न हों इसके लिए हमें उनकी पूजा साधना ध्यान और पवित्र
भावना का ध्यान रखना होगा |
शास्त्र, धर्म आदि में रूचि और विस्वाश
रखने वाला व्यक्ति सदैव अपने प्रत्येक शुभ कार्य करने से पहले अपने पितृ देवों का
आवाहन और ध्यान और पूजा जरुर करता हैं किन्तु केवल इतना ही काफी नहीं होता उन्हें
अपने अनुकूल बना कर अपना सहयोगी बनाने हेतु विशेस साधना की आवश्यकता भी होती है
शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध दिवस या पित्र पक्ष शुभ कार्यों के अनुकूल नहीं होते
| इस समय वायु की गति विशेस प्रकार की होती है और आकाश में तारा मण्डल का एक विशेस
समूह बनता है और जिससे इस समय पूर्वज पित्र सूक्ष्म मार्ग से पृथ्वी लोक पर आते
हैं और पूर्ण गति से भ्रमण करते हैं इस समय यदि कोइ व्यक्ति पूर्ण विधि विधान से
पित्तरेश्वर साधना करता है तो उसे पूर्ण रूप से और सरलता से सफलता प्राप्त होती है
रखने वाला व्यक्ति सदैव अपने प्रत्येक शुभ कार्य करने से पहले अपने पितृ देवों का
आवाहन और ध्यान और पूजा जरुर करता हैं किन्तु केवल इतना ही काफी नहीं होता उन्हें
अपने अनुकूल बना कर अपना सहयोगी बनाने हेतु विशेस साधना की आवश्यकता भी होती है
शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध दिवस या पित्र पक्ष शुभ कार्यों के अनुकूल नहीं होते
| इस समय वायु की गति विशेस प्रकार की होती है और आकाश में तारा मण्डल का एक विशेस
समूह बनता है और जिससे इस समय पूर्वज पित्र सूक्ष्म मार्ग से पृथ्वी लोक पर आते
हैं और पूर्ण गति से भ्रमण करते हैं इस समय यदि कोइ व्यक्ति पूर्ण विधि विधान से
पित्तरेश्वर साधना करता है तो उसे पूर्ण रूप से और सरलता से सफलता प्राप्त होती है
ये एक अटूट सत्य पितरों के कारण ही
वर्तमान का शरीर अस्तित्व में आ पाया है उनके द्वारा पालन पोषण और जीवन को बनाने
में उनके सहयोग को भुलाया नहीं जा सकता किन्तु हम यही भूल जाते हैं जबकि इस भूल का
तात्पर्य है कि आप स्वयम के अस्तित्व को ही नकारना | अपने पूर्वजों के प्रति
सम्मान भक्ति की भावना निरंतर प्रकट करना और उनकी साधना करना हर दृष्टि से आवश्यक
है और यही तर्पण है |
वर्तमान का शरीर अस्तित्व में आ पाया है उनके द्वारा पालन पोषण और जीवन को बनाने
में उनके सहयोग को भुलाया नहीं जा सकता किन्तु हम यही भूल जाते हैं जबकि इस भूल का
तात्पर्य है कि आप स्वयम के अस्तित्व को ही नकारना | अपने पूर्वजों के प्रति
सम्मान भक्ति की भावना निरंतर प्रकट करना और उनकी साधना करना हर दृष्टि से आवश्यक
है और यही तर्पण है |
साधना विधान –
आवश्यक सामग्री- सफ़ेद वस्त्र सफ़ेद आसन
अपने लिए, एक कपडा सफ़ेद जो कि बजोट पर बिछाने हेतु,
अपने लिए, एक कपडा सफ़ेद जो कि बजोट पर बिछाने हेतु,
ताम्बे का पात्र पांच तीन मुखी काले
रुद्राक्ष, ११ लघु नारियल, सिन्दूर, चावल कुमकुम हल्दी काले तिल, घी और रुद्राक्ष
माला |
रुद्राक्ष, ११ लघु नारियल, सिन्दूर, चावल कुमकुम हल्दी काले तिल, घी और रुद्राक्ष
माला |
प्रथम दिन प्रातः स्नानादि से निवृत्त
होकर जहा आपको पूजन करना है उस स्थान को धो पोंछ कर साफ करलें फिर दक्षिण की ओर
मुह कर करके एक बाजोट पर सफ्र्द वस्त्र बिछाकर काले तिल की ढेरी पर पांचों
रुद्राक्ष स्थापित कर दें ,उनके पीछे चावल की ढेरी पर अर्द्ध चन्द्राकार ११ लघु
नारियल स्थापित करें सामने एक घी का दीपक प्रज्वलित करें, अब ताम्र पात्र में जल भरकर
बाहर जाएँ और सूर्य को अर्ध्य दें फिर अपनी अंजुली में जल लेकर निम्न मंत्र के साथ
अर्ध्य दें –
होकर जहा आपको पूजन करना है उस स्थान को धो पोंछ कर साफ करलें फिर दक्षिण की ओर
मुह कर करके एक बाजोट पर सफ्र्द वस्त्र बिछाकर काले तिल की ढेरी पर पांचों
रुद्राक्ष स्थापित कर दें ,उनके पीछे चावल की ढेरी पर अर्द्ध चन्द्राकार ११ लघु
नारियल स्थापित करें सामने एक घी का दीपक प्रज्वलित करें, अब ताम्र पात्र में जल भरकर
बाहर जाएँ और सूर्य को अर्ध्य दें फिर अपनी अंजुली में जल लेकर निम्न मंत्र के साथ
अर्ध्य दें –
ॐ लं नम:
ॐ वं नमः
ॐ रं नमः
ॐ यं नमः
तत्पश्चात बिना किसी की ओर देखे अन्दर
आ जायें और आसन पर बैठकर संकल्प लें कि –मै अमुक गौत्र का अमुक नाम व्यक्ति अपने पितरों की प्रसन्नता और कृपा
प्राप्ति हेतु इस साधना को समपन्न कर रहा हूँ | घी तिल मिलकर रख लें और निम्न
ध्यान मन्त्र का पूर्ण श्रद्धा भाव से जप करते हुए तिल घी पांचों रुद्राक्ष पर
अर्पित करें इस मन्त्र का पांच बार जप करना है तथा पांच बार ही चढ़ाना है
आ जायें और आसन पर बैठकर संकल्प लें कि –मै अमुक गौत्र का अमुक नाम व्यक्ति अपने पितरों की प्रसन्नता और कृपा
प्राप्ति हेतु इस साधना को समपन्न कर रहा हूँ | घी तिल मिलकर रख लें और निम्न
ध्यान मन्त्र का पूर्ण श्रद्धा भाव से जप करते हुए तिल घी पांचों रुद्राक्ष पर
अर्पित करें इस मन्त्र का पांच बार जप करना है तथा पांच बार ही चढ़ाना है
स्व शरीरं तेजोमय पुण्यात्मकं पुरुषार्थसाधनम
पित्तरेश्वराराधनयोग्यं ध्यात्वा तस्मिन् शरीरः
सर्वात्मकं सर्वज्ञं सर्वशक्ति समन्वितम
पित्तरेस्वरामय आनंद स्वरूपं भावयेत ||
इस प्रकार
अत्यंत पवित्र मन और भावना से किया गए मन्त्र से पितृ देव प्रसन्न भाव से आकर आसन
ग्रहण कर उस पर प्रतिष्ठित हो जायेंगे | ये साधना मूल रूप आपकी भावना को प्रदर्शित
करती है अतः भावना आदरणीय और भक्ति युक्त होना चाहिए | पूर्ण भक्ति भाव से श्रद्धा
युक्त होकर पितृ देवों से हर द्रष्टि से सह्योग कि इक्छा प्रकट करें |
अत्यंत पवित्र मन और भावना से किया गए मन्त्र से पितृ देव प्रसन्न भाव से आकर आसन
ग्रहण कर उस पर प्रतिष्ठित हो जायेंगे | ये साधना मूल रूप आपकी भावना को प्रदर्शित
करती है अतः भावना आदरणीय और भक्ति युक्त होना चाहिए | पूर्ण भक्ति भाव से श्रद्धा
युक्त होकर पितृ देवों से हर द्रष्टि से सह्योग कि इक्छा प्रकट करें |
अब
अर्ध्य चंद्राकार रूप में स्थापित लघु नारियल की केसर घी सिन्दूर चावल ,और तुलसी
पत्र आदि से पूजा करे.
अर्ध्य चंद्राकार रूप में स्थापित लघु नारियल की केसर घी सिन्दूर चावल ,और तुलसी
पत्र आदि से पूजा करे.
अब
रुद्राक्ष माला से निम्न मन्त्र की पांच माला जप करें
रुद्राक्ष माला से निम्न मन्त्र की पांच माला जप करें
“ॐ सर्व पित्र प्रं प्रसन्नो भव”
Om sarva pitra pram prasanno bhava
इस
प्रकार पूरे 15 दिन श्राद्धों में इस
साधना को संपन्न करना है अंतिम दिवस यानि पितृ मोक्ष अमावस्या को साधना संपन्न कर
भोजन और मिष्ठान्न के साथ तर्पण कर सभी सामग्री को उसी वस्त्र में लपेट कर जल में
में प्रवाहित कर दे या शमशान में रख आवे |
साधना को संपन्न करना है अंतिम दिवस यानि पितृ मोक्ष अमावस्या को साधना संपन्न कर
भोजन और मिष्ठान्न के साथ तर्पण कर सभी सामग्री को उसी वस्त्र में लपेट कर जल में
में प्रवाहित कर दे या शमशान में रख आवे |
इस तरह से किया गया तर्पण और पूजन न
केवल पित्रदोश मुक्त करेगा अपितु पित्तरो को प्रसन्न भी करेगा और उनकी कृपा से
आपकी चहूँ ओर उन्नति होने लगेगी |
केवल पित्रदोश मुक्त करेगा अपितु पित्तरो को प्रसन्न भी करेगा और उनकी कृपा से
आपकी चहूँ ओर उन्नति होने लगेगी |
अकाट्य सत्य—पूर्ण श्रद्धा भाव से की
गयी साधना फलित होगी ही तो स्वयम संपन्न करें ओर अनुभव करें —
गयी साधना फलित होगी ही तो स्वयम संपन्न करें ओर अनुभव करें —
****RAJNI NIKHIL****