भारत के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों की सूची
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम ऐसे क्रांतिकारों के कारनामों से भरा है जिन्होंने अपनी चिंगारी से युगों को रौशन किया है। प्रस्तुत लेख में ऐसे ही प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी का संक्षिप्त परिचय दिया गया है
प्रमुख क्रान्तिकारी / स्वतंत्रता सेनानी (Leading Freedom Fighter of India)

भारत की आज़ादी के लिए क्रांतिकारी आंदोलन का समय सामान्यतः लोगों ने सन् 1857 से 1947 तक माना है। वस्तुतः भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन का यह स्वर्ण युग था। भारत की धरती के लिए जितनी भक्ति और मातृ-भावना इस युग में थी, उतनी कभी नहीं रही।
भारत की स्वतंत्रता के लिये अंग्रेजों के विरुद्ध आन्दोलन को दो प्रकार से बाटा जा सकता है। एक अहिंसक आन्दोलन एवं दूसरा सशस्त्र आंदोलन।
भारत को मुक्त कराने के लिए सशस्त्र विद्रोह की एक अखण्ड परम्परा रही है। किन्तु भारत की स्वतंत्रता के बाद आधुनिक नेताओं ने भारत के सशस्त्र क्रान्तिकारी आन्दोलन को इतिहास में कम महत्व दिया है औऱ यह सिद्ध करने की चेष्टा की गई कि हमें स्वतंत्रता केवल अहिंसात्मक आंदोलन के माध्यम से मिली है।
प्रमुख क्रान्तिकारी / स्वतंत्रता सेनानी में कुछ प्रमुख व्यक्तित्व का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है-
मंगल पाण्डेय (प्रथम स्वतंत्रता सेनानी)
मंगल पाण्डेय 1857 ई. की महान क्रान्ति के वे प्रथम शहीद थे। इन्होंने 1857 में भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
मंगल पांडे का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा नामक गांव में 30 जनवरी 1831 को एक “भूमिहार ब्राह्मण” परिवार में हुआ था। हांलाकि कुछ इतिहासकार इनका जन्म-स्थान फैज़ाबाद के गांव सुरहुरपुर को मानते हैं।
मंगल पाण्डेय पश्चिम बंगाल में बैरकपुर स्थित 34 वीं पलटन के सिपाही थे। चर्बी वाले कारतूस के प्रयोग पर इन्होंने सार्जेण्ट मेजर ह्यूसटन को गोली मार दी थी। तत्कालीन अंग्रेजी शासन ने उन्हें बागी करार देकर 8 अप्रैल, 1957 को इन्हें फाँसी दे दिया गया।
रानी लक्ष्मीबाई (खूब लड़ी मर्दानी)
लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी में 19 नवम्बर 1828 को हुआ था। रानी लक्ष्मीबाई के बचपन का नाम ‘मनु’ था। ये पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र नाना साहेब मोरोपन्त की पुत्री थीं। इनका पालन पोषण अंग्रेजों के पेंशनर पेशवा बाजीराव द्वितीय की देखरेख में बिठुर में हुआ था। बाजीराव इन्हें ‘छबीली’ कहते थे। पेशवा से इन्होंने घुड़सवारी और तलवारबाजी सीखी थी।
इनका विवाह झाँसी के महाराज गंगाधर से हुआ। जिससे झांसी की रानी लक्ष्मीबाई नाम से प्रसिद्ध हुई। गंगाधर राव की मृत्यु के बाद गवर्नर जनरल डलहौजी ने हड़प नीति’ द्वारा झाँसी राज्य को 7 मार्च, 1854 को अंग्रेजी साम्राज्य में सम्मिलित कर दिया।
रानी लक्ष्मीबाई ने अपने दत्तक पुत्र दामोदर राव को उत्तराधिकारी स्वीकार कराने का कम्पनी सरकार से प्रयास किया, किन्तु वे असफल रही। अतः इन्होंने अंग्रेजों से असंतुष्ट होकर 1857 ई. की महान क्रान्ति में अंग्रेजों को टक्कर दीं। 18 जून, 1858 को अंग्रेजी सेना से लड़ते हुए इस महान वीरांगना ने वीरगति प्राप्त हो गयी।
बेगम हजरत महल (लखनऊ विद्रोह का नेतृत्व)
बेगम हज़रत महल का जन्म 1820 में फैजाबाद में हुआ था। यह अवध के नवाब वाजिद अली शाह की दूसरी पत्नी थीं। अंग्रेज़ों द्वारा कलकत्ते में अपने शौहर के बंदी बनाकर रखने के बाद उन्होंने
अंग्रेज़ों के क़ब्ज़े से अपनी रियासत बचाने के लिए सन 1857 में उन्होंने अपने नाबालिक बेटे बिरजिस क़द्र को अवध के वली (शासक) के रूप में नियुक्त कर लखनऊ में विद्रोह का नेतृत्व किया और अंग्रेजों को वहाँ से खदेड़ दिया।
परंतु, सितम्बर, 1858 में अंग्रेजों ने पुनः लखनऊ पर अपना कब्जा कर लिया। फलतः महारानी बेगम हजरत महल नेपाल पलायन कर गयीं। जहाँ उनकी मृत्यु 1879 में हुई।
अजीजन बेगम (नर्तकी से क्रांतिकारी का सफर)
अजीजनबाई मूलतः एक पेशेवर नर्तकी थी जो देशभक्ति की भावना से भरपूर थी। गुलामी की बेड़ियां तोड़ने के लिए उसने घुंघरू उतार दिए थे।
अजीजन बेगम का जन्म लखनऊ में हुआ था, लेकिन परिस्थिति वश ये कानपुर में जाकर तवायफ का काम करने लगी थीं। 1857 ई. की महान क्रान्ति में नाना साहेब के अह्नान पर फिरंगियों से टक्कर लेने के लिए स्त्रियो का सशस्त्र दल गठित किया एवं उसकी कमान संभाली।
इनको जब गिरफ्तार करके अंग्रेज कमाण्डर हेनरी हेवलॉक के समक्ष लाया गया तो क्रान्तिकारी अजीमुल्ला खाँ का पता बताने की शर्त पर इन्हें माफी का वायदा किया गया। लेकिन इन्होंने ऐसा करने से स्पष्ट इनकार कर दिया, जिसके फलस्वरूप इन्हें गोली से उड़ा दिया गया।
नाना साहेब (अंग्रेज़ो ने रखा था 1 लाख का इनाम)
नाना साहेब का जन्म 19 मई 1824 कानपुर बिठूर में हुआ था। इनका प्रारंभिक नाम गोविन्द था लेकिन वे अपने परिवार में ‘धोधोपन्त’ के नाम से चर्चित थे। इनका लालन-पालन अंतिम मराठा पेशवा बाजीराव द्वितीय ने अपने दत्तक पुत्र के रूप में बिठुर में किया था। बाजीराव इन्हें प्यार से ‘नाना’ कहते थे।
नाना साहेब सन 1857 के भारतीय स्वतन्त्रता के प्रथम संग्राम के प्रमुख सेनानी थे। अंग्रेजों द्वारा पेशवा पद समाप्त किये जाने के कारण असन्तुष्ट नाना साहेब ने 1857 ई. की महान क्रान्ति में विद्रोहियों का कानपुर में नेतृत्व किया था। अंग्रेजों ने इन्हें पकड़ने के लिए ₹ 1 लाख का इनाम भी रखा था। अंततः ये नेपाल के जंगलों में पलायन कर गये।
तात्या टोपे (अंग्रेज़ो को दांतों तले चने चबाने वाले)
स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी रहे तात्या टोपे का जन्म 1814 में येवला में हुआ। इनके पिता का नाम पांडुरंग त्र्यंबक भट तथा माता का नाम रुक्मिणी बाई था। तात्या का वास्तविक नाम रामचंद्र पांडुरंग राव था, परंतु लोग स्नेह से उन्हें तात्या के नाम से पुकारते थे।
लक्ष्मीबाई के साथ इनका भी पालन-पोषण बिदुर में पेशवा बाजीराव द्वितीय की देखरेख में हुआ था। कहा जाता है कि बाजीराव द्वितीय ने ही इनको ‘तात्या टोपे’ नाम दिया था।
सन 1857 के महान विद्रोह में उनकी भूमिका सबसे महत्त्वपूर्ण, प्रेरणादायक और बेजोड़ थी। ये नाना साहेब की फौज के सेनापति थे।नखर के राजा मानसिंह के धोखा देने से इन्हें 7 अप्रैल, 1857 को गिरफ्तार कर दिया तथा अप्रैल, 1859 में फांसी पर चढ़ा दिया गया।
पंडित मदन मोहन मालवीय (बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक)
पं. मदन मोहन मालवीय का जन्म 27 दिसम्बर, 1861 को प्रयागराज (इलाहाबाद) में हुआ था। मालवीय शिक्षा सुधारक, स्वतंत्रता सेनानी, वकील और राजनीतिज्ञ थे, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के चार बार अध्यक्ष और अखिल भारतीय हिंदू महासभा के संस्थापक रहे।
मालवीय जी ने भारतीयों की शिक्षा की ओर विशेष ध्यान दिया। इसी उद्देश्य से इन्होंने 1918 ई. में ‘बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की।
जब मालवीय इलाहाबाद हाई कोर्ट में वकालत कर रहे थे तो उन्होंने गोरखपुर के चौरी चौरा घटना में आरोपी बनाए गए क्रांतिकारियों का केस लड़ा था। कहा जाता है कि उन्होंने 153 क्रांतिकारियों को मौत की सजा से बचाया था।
पंडित मदन मोहन मालवीय अपने महान कार्यों के चलते ‘महामना’ कहलाए। 1946 ई. में मालवीय जी का देहान्त हो गया। 2014 ई. में मृत्युपरान्त इन्हें भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया।
पं. मोतीलाल नेहरू (जवारलाल नेहरू के पिता)
पंडित मोतीलाल नेहरू का जन्म 1861 ई. में इलाहाबाद में हुआ था। मोतीलाल इलाहाबाद के एक प्रसिद्ध अधिवक्ता, स्वतंत्रता सेनानी और भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू के पिता थे।
असहयोग आन्दोलन में इन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। जलियांवाला बाग काण्ड के बाद 1919 में अमृतसर में हुई कांग्रेस के वे पहली बार अध्यक्ष बने और फिर 1928 में कलकत्ता में दोबारा कांग्रेस के अध्यक्ष बने।
1930 ई. में apne मृत्यु से पूर्व इन्होंने कहा था कि “मैं स्वाधीन भारत में मरना चाहता था, परन्तु मेरी इच्छा पूर्ण न हो सकी।”
मौलाना मोहम्मद अली जौहर ( खिलाफत समिति के अध्यक्ष)
राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रमुख नेता मौलाना मोहम्मद अली का जन्म 1878 ई. में रामपुर में हुआ था। मोहम्मद अली जौहर एक भारतीय मुस्लिम नेता, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के कार्यकर्ता, विद्वान, पत्रकार और कवि थे।
इन्होंने 1906 ई. में डाका में हुई अखिल भारतीय मुस्लिम लीग’ की बैठक में भाग लिया तथा 1918 ई. में इसके अध्यक्ष बने। खिलाफत आन्दोलन के दौरान इन्हें ‘खिलाफत समिति’ का अध्यक्ष चुना गया। 1918 ई. में इस आन्दोलन के क्रम में ये इंग्लैण्ड गए तथा वहाँ मुस्लिम नेताओं का प्रतिनिधित्व किया।
1923 ई. में इन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। सन 1931 ई. में सम्पन्न गोलमेज सम्मेलन में मुस्लिम लीग के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया।
4 जनवरी, 1931 को लंदन में गोलमेज सम्मेलन के तुरंत बाद इनका इन्तकाल हो गया। उनकी इच्छा के अनुसार उन्हें जेरूसलम में दफनाया गया। वर्तमान में मुहम्मद अली के सम्मान में रामपुर जिले में मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय समर्पित है।
चन्द्रशेखर आजाद (ख़ुदको गोली मारी)
चन्द्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्य प्रदेश के झाबुआ जिला अन्तर्गत भावरा नामक गाँव में हुआ था। मात्र 14 वर्ष की अल्पायु में काशी में संस्कृत का अध्ययन करने गए और पढ़ाई छोड़कर स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद गए।
इन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन नामक क्रान्तिकारियों का एक संगठन बनाया था। इस संगठन में राजेन्द्र लाहिड़ी, रामप्रसाद बिस्मिल, शचीन्द्रनाथ सान्यात योगेश चन्द्र चटर्जी जैसे क्रान्तिकारी सम्मिलित थे।
इस संगठन को धन की आवश्यकता की पूर्ति के लिए सितम्बर, 1925 में काकोरी में सरकारी खजाना लूटा गया। 27 फरवरी को इलाहाबाद के अलफ्रेड पार्क में अंग्रेज पुलिस से घिर जाने के बाद इन्होंने स्वयं को गोलो मार ली और शहीद हो गये।
राम प्रसाद बिस्मिल (कट्टर आर्यसमाजी)
राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 ई. में शाहजहांपुर में हुआ था। ये भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की क्रान्तिकारी धारा के एक प्रमुख सेनानी और चन्द्रशेखर आजाद के सहयोगी थे।
ये मैनपुरी षड्यन्त्र व काकोरी-काण्ड जैसी कई घटनाओं में शामिल थे तथा हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के सदस्य भी थे। काकोरी केस में 30 वर्ष की आयु में इन्हें 1927 गोरखपुर में फांसी दे दी गई।
पुरुषोत्तम दास टंडन (किसानों के सक्रिय नेता)
पुरुषोत्तम दास टंडन का जन्म 1 अगस्त, 1882 को उत्तर प्रदेश के प्रयाग (इलाहाबाद) में हुआ था। पुरुषोत्तम दास टंडन अत्यंत मेधावी और बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उनका कार्यक्षेत्र मुख्यतः तीन भागों में बँटा हुआ है- स्वतंत्रता संग्राम, साहित्य और समाज।
सन 1899 ई. से ही वे कांग्रेस के सदस्य थे। सन 1921 ई. में वकालत छोड़कर सक्रिय राजनीति में कूद पड़े। उन्होंने असहयोग आन्दोलन तथा नमक सत्याग्रह में सक्रिय भूमिका निभाई।
ये किसानो के सक्रिय नेता थे। सन 1934 ई. में बिहार राज्य किसान सभा के सभापति निर्वाचित हुए। वे लगातार 13 वर्षों तक, जुलाई, 1937 से अगस्त, 1950 वर्तमान उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष रहे तथा 1946 ई. में संविधान सभा के निर्वाचित हुए। 1952 ई. में वे लोकसभा तथा 1956 ई. में राज्य सभा के सदस्य चुने गये।
सन 1961 ई. में इन्हें ‘भारत रत’ से सम्मानित किया गया। 1 जुलाई, 1962 में इनका देहान्त हो गया।
आचार्य नरेन्द्र देव (भारतीय समाजवाद के पितामह)
भारत के प्रमुख समाजवादी आचार्य नरेन्द्र देव का जन्म 1889 ई. में हुआ था। इन्होंने 1915 ई. में बाल गंगाधर तिलक तथा अरविन्द घोष के प्रभाव में आकर राष्ट्रीय आन्दोलन में प्रवेश किया। ये पेशे से शिक्षक थे तथा मार्क्सवाद व बौद्ध धर्म में इनकी रुचि थी।
आचार्य नरेंद्रदेव भारत के प्रमुख स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी, पत्रकार, साहित्यकार एवं शिक्षाविद थे।
इन्होंने जयप्रकाश नारायण के साथ मिलकर 1934 ई. में कांग्रेस समाजवादी पार्टी की स्थापना की। 1956 ई. में इनका देहान्त हो गया।
पंडित जवाहर लाल नेहरू (भारत के प्रथम प्रधानमंत्री)
पंडित जवाहर लाल नेहरू का जन्म 14 नवंबर, 1889 को इलाहाबाद में हुआ था। जवाहरलाल नेहरू, भारत के स्वतंत्रता सेनानी और प्रथम प्रधानमन्त्री थे।
इन्होंने इंग्लैण्ड से बी. ए. तथा कानून की परीक्षा पास की थी। 1912 ई. में भारत वापस आकर इलाहाबाद में वकालत प्रारंभ की तथा इसी समय से इन्होंने कांग्रेस के अधिवेशन में भाग लेना प्रारंभ कर दिया।
महात्मा गांधी के संरक्षण में, वे भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के सर्वोच्च नेता के रूप में उभरे। 1923 ई. में इन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का महासचिव बनाया गया। 1928 ई. में ‘साइमन कमीशन’ के बहिष्कार के दौरान ये लखनऊ में लाठियों से घायल हुए।
1929 ई. में कांग्रेस के साहौर अधिवेशन में इन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया, जहाँ इन्होंने घोषणा की कि हमारा लक्ष्य स्वाधीनता है।” इन्होंने सविनय अवज्ञा आन्दोलन तथा 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया था तथा जेल भी गये।
1946 ई. में इन्होंने भारत की अन्तरिम सरकार का गठन किया तथा भारत के स्वतंत्र होने पर इन्हें भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस पद पर वे मृत्यु पर्यन्त ( 27 मई, 1964) पर रहे। इन्हें मृत्युपरान्त 1955 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
डॉ. राममनोहर लोहिया (कट्टर समाजवादी)
डॉ॰ राममनोहर लोहिया भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानी, प्रखर चिन्तक तथा समाजवादी राजनेता थे। डॉ. राममनोहर लोहिया जन्म 23 मार्च, 1910 को अम्बेडकर नगर जनपद के अकबरपुर गाँव में हुआ।
वे गाँधीजी के समर्थक थे तथा 10 वर्ष की अवस्था में उन्होंने एक सत्याग्रह यात्रा में भाग लिया। उन्होंने 1928 ई. में साइमन कमीशन के विरोध में छात्र आन्दोलन का नेतृत्व किया।
लोहिया कट्टर समाजवादी थे तथा 1934 ई. में हुए कांग्रेस समाजवादी पार्टी के गठन में उन्होंने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। 1936 ई. में वे अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सचिव नियुक्त हुए। वे 1942 ई. के भारत छोड़ो आन्दोलन के समय गुप्त क्रान्तिकारी गतिविधियों के प्रमुख नेता थे।
आजादी के बाद किसानों की समस्या को दूर करने के लिए उन्होंने ‘हिन्द किसान पंचायत’ का गठन किया। वे प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के महासचिव थे। 12 अक्टूबर 1947 को दिल्ली में उनका निधन हो गया।
लाल बहादुर शास्त्री (भारत के दूसरे प्रधानमंत्री)
लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 को मुगलसराय में हुआ था। शास्त्री जी ने काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि प्राप्त की थी। महात्मा गाँधी से प्रभावित होकर 1921 ई. में शास्त्री जी राष्ट्रीय आन्दोलन में कूद पड़े और कई बार जेल गये।
1951 ई. में शास्त्री जी कांग्रेस के महामंत्री बनाए गए। तत्पश्चात् इन्होंने अनेक पद पर कार्य किया। पंडित जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु के पश्चात् 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 को अपनी मृत्यु तक लगभग अठारह महीने भारत के प्रधानमन्त्री रहे।
1965 ई. में भारत-पाक युद्ध में विजय प्राप्त करने का श्रेय इन्हीं को दिया जाता है। इस युद्ध के दौरान इन्होंने ‘जय जवान जय किसान का नारा दिया था।
11 जनवरी, 1966 को ताशकन्द में इनकी मृत्यु हो गई। शास्त्री जी प्रथम व्यक्ति थे, जिन्हें मरणोपरान्त ‘भारत रल’ से सम्मानित किया गया।
इन्दिरा गाँधी (प्रथम महिला प्रधान मंत्री)
इंदिरा जी का जन्म 19 नवंबर, 1917 को उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद (वर्तमान प्रयागराज) में हुआ था। इंदिरा गांधी बचपन से ही अपने परिवार के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेती थी। उन्होंने अपनी एक सेना ‘वानर सेना’ भी बनाई थी। सन 1941 ई. में इंग्लैण्ड से लौटने के बाद स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने लगी।
इन्दिरा गाँधी, भारत की प्रथम और अब तक एकमात्र महिला प्रधानमंत्री रहीं है। इंदिरा सन 1966 ई. में लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के उपरान्तः देश की प्रधानमंत्री बनीं थी। इंदिरा सन 1966 से 1977 ई. तथा पुनः 1980 से 1984 ई. पुनः चौथी बार कुल 15 वर्षों तक प्रधानमंत्री रही।
इंदिरा गांधी दूरदर्शी, कल्पनाशील और दृढ़ संकल्प वाली महान महिला थीं। बैंकों का राष्ट्रीयकरण, भूमि सुधार, पोखरण में आणविक विस्फोट, बंगलादेश की स्वतंत्रता के लिए पाकिस्तान से युद्ध कुछ प्रमुख कार्य है।