Beej Durga Saptashati: बीज मंत्रात्मक श्री दुर्गासप्तशती पाठ विधि
Beej Durga Saptashati: दुर्गा सप्तशती एक प्राचीन धार्मिक ग्रंथ है। यह मार्कण्डेय पुराण का अंश हैं। इसमें देवी दुर्गा की महिषासुर नामक राक्षस के ऊपर विजय का वर्णन है। इसमे 700 श्लोक होने के कारण इसे ‘दुर्गा सप्तशती’ भी कहते हैं। दुर्गा सप्तशती 3 भागों में विभक्त है।
- प्रथमचरित्र: 1 अध्याय
- मध्यमचरित्र: 2,3,4 अध्याय
- उत्तरचरित्र: 5,6,7, 8, 9, 10, 11,12 अध्याय
प्रश्न: बीज दुर्गा सप्तशती क्या है?
उत्तर: बीज दुर्गासप्तशती, दुर्गासप्तशती का बीजात्मक रूप है। प्रारंभ में यह गोपनीय रूप से सिद्धों और तांत्रिको द्वारा प्रयोग में लाया जाता था।
बीजात्मक रूप में होने के कारण इसका पाठ सरलता पूर्वक और कम समय में किया जा सकता है। नवरात्रि के दिनों में इसका पाठ करके साधारण गृहस्थ भी लाभ ले सकते है। प्रस्तुत है, बीजात्माक दुर्गा सप्तशती पाठ विधि..
श्री दुर्गा सप्तशति बीजमंत्रात्मक साधना (www.imvashi.com)
आसन शुद्धि: किसी भी तरह की पूजा स्तुति और शुभारंभ से पहले जिस आसन पर आप विराजमान होना चाहते है उस पर बैठने से पहले नीचे दिए गए इस मंत्र से आसन को शुद्ध का लेना चाहिए। आसन शुद्धि मंत्र इस प्रकार से है :-
ऊँ पृथ्वीत्वया धृता लोकादेवि त्वं विष्णुना धृता,
त्वं च धारय मां देवि पवित्र कुरु चासनम् ||
पवित्रीकरण और आचमन: दाएं हाथ से बाएं की अंजुली में जल डालें। तत्पश्चात दाए हाथ की मध्यमा (मिडिल फिंगर) और अनामिका उंगली (रिंग फिंगर) को जल में रख, मंत्र का उच्चारण करते हुए 3 बार अपने शरीर और पूजन सामग्री में छींटे मारें। मंत्र इस प्रकार है –
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।
यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ।
फिर आचमन करें। आचमन करने के लिए दाएं हाथ में एक चम्मच जल डालें। प्रत्येक मंत्र बोलते हुए उसे कलाई वाले स्थान से पी जाएं। ऐसा 3 बार करना है।
- ॐ केशवाय नमः
- ॐ माधवाय नमः
- ॐ नारायणाय नमः
तत्पश्चात एक चम्मच पानी पुनः दाएं हाथ में डालकर हाथ धो लें। इसके बाद गुरु पूजन और गणेश पूजन करें।
गुरु पूजन और गणेश पूजन : 1 माला गुरु मंत्र की जपे, यदि गुरु नही है तो “ॐ नमः शिवाय” की 1 माला जपें। भगवान शिव से पाठ करने की अनुमति लें। तत्पश्चात पूजनीय श्री गणेश का मंत्र “ॐ श्री गणेशाय नमः” कम से कम 11 बार अथवा 1 माला जाप करें। तत्पश्चात..
ॐ ह्रों जुं सः सिद्ध गुरूवे नमः [3बार]
ॐ दुर्गे दुर्गे रक्ष्णी ठः ठः स्वाहः [3 बार]
इसके बाद कुंजिका स्त्रोत का पाठ करें। इसके बिना दुर्गापाठ का फलनिष्फल हो जाता है। कुंजिका स्त्रोत निम्न है।
सिद्ध कुञ्जिकास्तोत्रम | Siddha Kunjika Stotram
विनियोग: ॐ अस्य श्री कुन्जिका स्त्रोत्र मंत्रस्य सदाशिव ऋषि:॥अनुष्टुपूछंदः ॥ श्री त्रिगुणात्मिका देवता ॥ ॐ ऐं बीजं ॥ ॐ ह्रीं शक्ति: ॥ ॐ क्लीं कीलकं ॥ मम सर्वाभीष्टसिध्यर्थे जपे विनयोग: ॥
शिव उवाच:
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः भवेत् ॥1॥
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम् ।
न न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ॥2॥
कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत् ।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ॥ 3॥
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम् ।
पाठमात्रेण संसिद्ध् येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥4
अथ मंत्र :
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामण्डायै विच्चे | ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ||
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दीनि |
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दीनि ||
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भसुरघातिनि |
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे ||
ऐंकारी सृष्टीरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका |
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोस्तुते ||
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी |
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि ||
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी |
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुंभ कुरू ||
हुं हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी |
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रै भवान्यै ते नमो नमः ||
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं |
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा ||
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा |
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे ||
|ॐ नमश्चण्डिकायैः|ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु||
प्रथम चरित्र

विनियोग: ॐ अस्य श्री प्रथमचरित्रस्य ब्रह्मा रूषिः महाकाली देवता गायत्री छन्दः नन्दा शक्तिः रक्तदन्तिका बीजम् अग्निस्तत्त्वम् रूग्वेद स्वरूपम् श्रीमहाकाली प्रीत्यर्थे प्रथमचरित्र जपे विनियोगः।।
प्रथम अध्याय: श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं प्रीं ह्रां ह्रीं सौं प्रें म्रें ल्ह्रीं म्लीं स्त्रीं क्रां स्ल्हीं क्रीं चां भें क्रीं वैं ह्रौं युं जुं हं शं रौं यं विं वैं चें ह्रीं क्रं सं कं श्रीं त्रों स्त्रां ज्यैं रौं द्रां द्रों ह्रां द्रूं शां म्रीं श्रौं जूं ल्ह्रूं श्रूं प्रीं रं वं व्रीं ब्लूं स्त्रौं ब्लां लूं सां रौं हसौं क्रूं शौं श्रौं वं त्रूं क्रौं क्लूं क्लीं श्रीं व्लूं ठां ठ्रीं स्त्रां स्लूं क्रैं च्रां फ्रां जीं लूं स्लूं नों स्त्रीं प्रूं स्त्रूं ज्रां वौं ओं श्रौं रीं रूं क्लीं दुं ह्रीं गूं लां ह्रां गं ऐं श्रौं जूं डें श्रौं छ्रां क्लीं
|ॐ नमश्चण्डिकायैः|ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु||
मध्यम चरित्र

वोविनियोग: ॐ अस्य श्री मध्यमचरित्रस्य विष्णुर्रूषिः महालक्ष्मीर्देवता उष्णिक छन्दः शाकम्भरी शक्तिः दुर्गा बीजम् वायुस्तत्त्वम् यजुर्वेदः स्वरूपम् श्रीमहालक्ष्मी प्रीत्यर्थे मध्यमचरित्र जपे विनियोगः
द्वितीय अध्याय: श्रौं श्रीं ह्सूं हौं ह्रीं अं क्लीं चां मुं डां यैं विं च्चें ईं सौं व्रां त्रौं लूं वं ह्रां क्रीं सौं यं ऐं मूं सः हं सं सों शं हं ह्रौं म्लीं यूं त्रूं स्त्रीं आं प्रें शं ह्रां स्मूं ऊं गूं व्र्यूं ह्रूं भैं ह्रां क्रूं मूं ल्ह्रीं श्रां द्रूं द्व्रूं ह्सौं क्रां स्हौं म्लूं श्रीं गैं क्रूं त्रीं क्ष्फीं क्सीं फ्रों ह्रीं शां क्ष्म्रीं रों डुं
|ॐ नमश्चण्डिकायैः|ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु||
तृतीय अध्याय: श्रौं क्लीं सां त्रों प्रूं ग्लौं क्रौं व्रीं स्लीं ह्रीं हौं श्रां ग्रीं क्रूं क्रीं यां द्लूं द्रूं क्षं ह्रीं क्रौं क्ष्म्ल्रीं वां श्रूं ग्लूं ल्रीं प्रें हूं ह्रौं दें नूं आं फ्रां प्रीं दं फ्रीं ह्रीं गूं श्रौं सां श्रीं जुं हं सं
|ॐ नमश्चण्डिकायैः|ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु||
चतुर्थ अध्याय: श्रौं सौं दीं प्रें यां रूं भं सूं श्रां औं लूं डूं जूं धूं त्रें ल्हीं श्रीं ईं ह्रां ल्ह्रूं क्लूं क्रां लूं फ्रें क्रीं म्लूं घ्रें श्रौं ह्रौं व्रीं ह्रीं त्रौं हलौं गीं यूं ल्हीं ल्हूं श्रौं ओं अं म्हौं प्री
|ॐ नमश्चण्डिकायैः|ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु||