द्वादश भावों में शनि का फल

शनि को कृष्ण का अवतार माना जाता है , ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार जहाँ कृष्ण कहते हैं कि वे “ग्रहों में शनि” हैं। उन्हें शनिश्वर भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है “शनि का देवता”, और उन्हें किसी के कर्मों का फल देने का कार्य सौंपा गया है, इस प्रकार वे हिंदू ज्योतिषीय देवताओं में सबसे अधिक भयभीत हो गए हैं। वे अक्सर हिंदू देवताओं में सबसे गलत समझे जाने वाले देवता हैं क्योंकि कहा जाता है कि वे किसी के जीवन में लगातार अराजकता पैदा करते हैं, और पूजा करने पर उन्हें सौम्य माना जाता है।
👉. लग्न (प्रथम) में शनि मकर, कुम्म तथा तुला का हो तो धनाढ्य, सुखी, धनु और मीन राशियों में हो तो अत्यन्त धनवान् और सम्मानित एवं अन्य राशियों का हो तो अशुभ होता है।
👉. द्वितीय भाव में शनि हो तो जातक कटुभाषी, साधुद्वेषी, मुखरोगी, और कुम्म या तुला का शनि हो तो धनी, लाभवान् एवं कुटुम्ब तथा भ्रातृवियोगी होता है।
👉. तृतीय भाव में शनि हो तो जातक नीरोगी, विद्वान् योगी, मल्ल, शीघ्रकार्यकर्ता, समाचतुर, चंचल, भाग्यवानु शत्रुहन्ता, एवं विवेकी होता है।
👉. चतुर्थभाव में शनि हो तो जातक अपयशी, बलहीन, धूर्त, कपटी, शीघ्रकोपी, कृशदेही, उदासीन, वातपित्तयुक्त एवं भाग्यवान् होता है।
👉. पंचम भाव में शनि हो तो जातक आलसी, सन्तानयुक्त, चंचल, उदासीन, विद्वान, भ्रमणशील एवं बातरोगी होता है।
👉. षष्ठभाव में शनि हो तो जातक बलवान्, आचारहीन, व्रणी, जातिविरोधी, श्वासरोगी, कण्ठरोगी, योगी, शत्रुहन्ता भोगी एवं कवि होता है।
👉. सप्तम भाव में शनि हो तो जातक क्रोधी, कामी, विलासी, अविवाहित रहना या दुःखी विवाहित जीवन, धन सुखहीन, भ्रमणशील, नीचकर्मरत्, स्त्रीभक्त एवं आलसी होता है।
👉. अष्टम भाव में शनि हो तो जातक विद्वान् स्थूलशरीरी, उदार प्रकृति, कपटी, गुप्तरोगी, वाचाल, डरपोक, कुष्ठरोगी एवं धूर्त होता है।
👉. नवम भाव मे शनि हो तो जातक धर्मात्मा, साहसी, प्रवासी, कृशदेही, भीरु, आतृहीन, शत्रुनाशक रोगी वातरोगी, भ्रमणशील एवं वाचाल होता है।
👉. दशम भाव में शनि हो तो जातक विद्वान, ज्योतिषी, राजयोगी, न्यायी, नेता, धनवान्, राजमान्य, उदरविकारी, अधिकारी, चतुर, भाग्यवान् परिश्रमी, निरुपयोगी एवं महत्त्वाकांक्षी होता है।
👉. ग्यारहवें भाव में शनि हो तो जातक बलवान् विद्वान, दीर्घायु, शिल्पी, सुखी, चंचल, क्रोधी, योगाभ्यासी, नीतिवान् परिश्रमी, व्यवसायी, पुत्रहीन, कन्याप्रज्ञ एवं रोगहीन होता है।
👉. बारहवें भाव में शनि हो तो जातक आलसी, दुष्ट, व्यसनी, व्यर्थ व्यय करने वाला, अपस्मार, उन्माद का रोगी, मातुलकष्टदायक, अविश्वासी एवं कटुभाषी होता है।